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Cab Driver

Cab Driver

 

रात के  ग्यारह  बज चुके  थेमेहर ने नोएडा सेक्टर-56 के अपने ज्वेलरी के शौरूम से बाहर निकली  और  अपनी  बुक की  हुई  कैब  को  देखने लगी। पर  दूर-दूर  तक कोई  गाड़ी  नज़र  नहीं  आई । अरे! क्या  टाइम  हो  गया  है अब  तक  निधि  की  बुक  की  हुई  कैब  क्यों  नहीं आई। मेरा फ़ोन तो काफ़ी  दिनों  से  ठीक से  काम  नहीं  कर  रहा  पर  यह  लड़की  भी  ठीक  से कोई  काम  नहीं  करती  हैमेहर ने चिढ़ते हुए कहा। चारों तरफ़ देखकर निधि  को  फ़िर फ़ोन  किया। पर निधि का फ़ोन भी बिज़ी जा रहा था। आज  तो  ऑटो  ही  लेना  पड़ेगा। हे! भगवान आज ठीक से घर पहुँचा दियो। मेहर परेशान होते हुए बोली।  मेहर  सहारनपुर  से  यहाँ अपनी बुआ के घर आई थीं।  उसकी  माँ  बचपन  में  ही  गुज़र  गई  थीं । और पिता  का  कुछ अरसे  पहले  ही  देहांत  हो  गया  था ।

तभी एक  कैब  दूर  से  आती  हुई  नज़र  आई।  उसे  लगा  कि  यह  क्या ! उसकी  सहेली  निधि  ने  आख़िर कैब  बुक  करवा  दी । कैब  अपनी  ही गति से  चली  जा  रही थी । कैब  ड्राइवर  ने  शायद  मेहर  को  नहीं  देखा  था, वह  तो  आगे बढ़ता ही जा रहा  था ।  तभी  निधि  कैब  के  सामने  आ गई  और  उसे  अपनी  गाड़ी  रोकनी  पड़ी । आप  कैब  रोक  क्यों  नहीं  रोक  रहे  थे ? इतनी  जल्दी  में  कहा  जा रहे  थे ।  "मैम  आपको कहा  जाना  है ? मुझे   यहाँ  नहीं  रुकना है।" ड्राइवर ने जल्दी  दिखाते हुए कहा।  " आप  चलो  पहले  ही  देर हो चुकी  है ।  मेहर  जैसे  जबरदस्ती कैब   में  बैठते हुए बोली।  अरे ! मैम यह  सब  क्या  है? ड्राइवर ने गुस्सा में कहा।  "ओला  कैब  मेरी  सहेली  ने  बुक  करी  है ।  अब  क्या  ड्रामे  कर  रहे  हो ?" मेहर  गुस्से  से  बोली । "जी  मेरी  कंपनी का  नाम  लूपरा  है । आपने  कोई  कैब  बुक  नहीं  की ।  मैं   किसी  और  को लेने  जा रहा  हूँ ।"  ड्राइवर बड़ी  तन्मयता  दिखाते  हुए  बोला । ओह ! इस  कंपनी  का  नाम  पहले  कभी   सुना  था  पर  मुझे  बहुत  देर  हो गई  है। अब  अकेली  लड़की  कैसे  जाएँगी  ? प्लीज  मुझे  घर  छोड़  दीजिये  कोई  ऑटो  और  कैब  भी  नहीं  मिल रही है । "प्लीज़  आई  बेग  यू " मेहर  ने  बड़ी  ही बेचारी  बनकर  कहा । "कहा चलना  है ?"  ड्राइवर  ने  मुँह  बनाते  हुए  कहा ।  बस मयूर  विहार फेज-3 छोड़ दीजिये। 

कैब  तेज़  चलती  गई  और  मेहर  के  बताये  पते पर  उसने कैब को रोक दिया गाड़ी  से  निकलकर  वह  बाहर  निकली  और  पैसे  पूछने  के लिए  जैसे  ही  ड्राइवर  को देखा, वह  उसे  देखती  ही रह  गई । इतना हैंडसम लड़का उसने  आज  तक  ज़िंदगी  में  नहीं   देखा  था ।  काली  आँखें, हल्के  घुँघराले  बाल न ज़्यादा  गोरा  न  काला  रंग  चेहरे  पर  इतनी   कशिश की  बस  देखती रह गयी। "आप रहने दीजिये मुझे  देर हो रही  है।" कहकर  ड्राइवर ने  कैब  वापिस  घुमा ली । और स्पीड से  कैब  निकालकर ले गया। और मेहर तब  तक  कैब  को  देखती  रही जब  तक  वह  आँखों  से  ओझल  नहीं  हो गई । जब  सोने  लगी  तो  उसी कैब वाले  का चेहरा ही  नज़र  आने लगा  अरे! काश ! यह  ड्राइवर न  होता, पर इससे  क्या  फर्क पड़ता है, पता नहीं  फिर कब मिलेगा? अब  कहाँ मिलेगा? शरीफ था। मुझे ठीक से घर पहुँचा दिया। और क्या चाहिए। ऐसे कितने सवालों के बारे में  सोचकर  उसे कब नींद आई  उसे  पता  ही नहीं  चला। 

कल  ज्वेलरी की शॉप में  जाते  हुए  उसने  सबसे  पहले  निधि  को फ़ोन  किया।  "निधि  कल  कैब बुक  क्यों  नहीं  करी  तूने  ? अरे ! कुछ दिखाई ही नहीं दे  कर रहा  था ।  ठीक  से पहुँच गयी  सॉरी  यार!  मैंने  तुझे  फिर फ़ोन भी किया  पर  तूने  कॉल  ही पिक नहीं  किया ?" निधि की  आवाज़  में  पछतावा  साफ़  झलक  रहा था ।  "मैं   तुझसे गुस्सा थी, पर  हाँ  मैं  ठीक  से  पहुंच  गयी थैंक्स  टू  डेट  हैंडसम  प्रिंस चार्मिंग ।"  मेहर  मुस्कुराते  हुए  बोली ।   कौन   था  वो  निधि  की  आवाज  में  एक खनक  थी।  "था कोई  बाद  में  बताऊँगी। मेहर  ने  कहकर  फ़ोन  रख  दिया।

दिवाली आने  वाली  है  और  इस  त्योहार  के  मौसम में  पहले  ही  शो रूम  में  बहुत  भीड़   है ।  तथा  रोज़  यह  बात  तो  तय  है  कि देर  तो  होनी  ही होनी हैं । पर  रात   को   वही  कैब   मिल जाये   तो क्या   कहने । मेहर मन ही मन यह सोचकर गुदगुदा उठी।  आज  मेहर फिर  किसी  ऑटो  का  ही इंतज़ार  कर  रही  थी ।  तभी  वही  कैब  गुज़री  और  उसने  हाथ  दे  दिया। "अरे! मैम  आप   कोई  और   गाड़ी  देखिये  न  वाय  मी"   ड्राइवर  ने  थोड़ा  मुस्कुराते  हुए तथा  व्यंग्य  करते  हुए  कहा। "खड़ूस कही  का  थोड़ी  शक्ल  क्या  अच्छी  मिल गई, यह  तो आसमान  में  ही रहने  लग गया । देखिये  आप  मुझे  आधे  रास्ते  ही  छोड़  दीजिये  मेरा  कजिन  मुझे  फिर वहाँ  से  लेने   आ  जाएगा।  पैसे  ले लेना  मेहर थोड़ा झिझकती  हुई  बोली। "आईये बैठिए" ड्राइवर ने  इतराते  हुए  कहा।

गाड़ी अपनी गति से चल रही थी। मेहर खिड़की से बाहर देखते हुए ही बोली-- "लगता है कि आपकी परमानेंट सवारी है जिसे आप पिक करते है। जी बिलकुल पर्मानेंट ही है।" ड्राइवर ने शांति से ज़वाब दिया। "आपकी कार में कोई शीशा क्यों नहीं है। आई मीन एक्सीडेंट भी तो हो सकता है।" मेहर ने  बात शुरू करने के लहजे से पूछा। "जिनकी गाड़ी में होते है क्या उनसे एक्सीडेंट नहीं होते है?" एक  अज़ीब सा रूखापन ड्राइवर की आवाज़ में था। ऐसा जवाब सुनकर मेहर ख़ामोश हो गई। "यह नूमना  तो बात करना ही नहीं चाहता अज़ीब है। बस आख़िरी बार कोशिश कर लेती हूँ।" मेहर ने मन ही  मन सोचा। "क्या बात है मेहर? कोई सेल्फ़ रेस्पेक्ट है या नहीं? या इस सपनों के राजकुमार से  बेइज़्ज़ती करानी है।" अंतरतमा की आवाज़ थी । अरे! "कल यह मिले न मिले नाम तो पूछा ही जा सकता है । मन ने मेहर को उकसाया। और मन जीत गया ।

 "मेरा नाम मेहर है। मैं यहाँ सहारनपुर से आयी हूँ। अपनी चाची के पास रहती हूँ। यहाँ एक ज्वेलरी शोरूम में सेल्स में काम करती हूँ । आपका नाम क्या है?" मेहर एक ही सांस में बोल गई। "मैंने  वैसे कुछ पूछा नहीं था।" ड्राइवर ने कार की खिड़की से बाहर देखते हुए कहा। "लो करा ली  बेइज़्ज़ती आया मज़ा! अंतरात्मा  की  आवाज़  थी। "आपका स्टॉप आ गया 100 रुपए दे दीजिये।  मेहर गाड़ी से उतरी 100 रुपए पकड़ाते हुए बोली "थैंक्यू"। उसकी आवाज़ में एक अज़ीब सा रूखापन  था। "मेरा नाम ताबिश है" कहकर ड्राइवर ने तेज़ गति से कैब चलाई और कैब नोएडा फ्लाईओवर पर चढ़ गई। "शायद यह भी मुझे पसंद करता है।" मेहर के मन ने कहा। "लेकिन शायद! मेहर की अंतरात्मा की आवाज़ थीं।" "हाँ"! मेहर के मन ने चिढ़ते हुए कहा और अंदर चली गई।

कल फिर से ताबिश वहीं मिला। कल, परसों जाने कितने दिन और थोड़ी-थोड़ी बातों का सिलसिला शुरू  हो गया। एक दिन मेहर ने ताबिश को कहा कि "क्या  हम  इस  लिफ्ट  के अलावा कहीं  मिल नहीं सकते। मेरा मतलब  किसी  मॉल  या  रेस्तरां में।" मेहर की आवाज़ में एक गुज़ारिश थीं। इतना  सुनते  ही  ताबिश  ने  गाड़ी  रोक  ली और बाहर निकलकर  कहने लगा कि "बाहर आओं  मेहर।" "यह मुझे गाड़ी से बाहर निकाल रहा है। कमब्ख़त कहीं का।" मेहर यही बड़बड़ाते  हुए गाड़ी से बाहर निकल गई । "मैं दिन में तो नहीं आ सकता पर मेरे पास यह रात है और दूसरा  तुमसे किसी भी तरह से अलग मिलना मेरी गर्लफ्रेंड को भी पसंद नहीं आएगा।" ताबिश मेहर की आँखों में देखता हुए बोला। "क्या! गर्लफ्रेंड" मेहर चिल्लाई! "मेरा  मतलब  गर्लफ्रेंड  राइट! शायद  यह  वहीं परमानेंट  सवारी  है जिसे  तुम  मुझे  छोड़कर  पिक  करते हो?" मेहर ने घूरते ताबिश की आँखों में देखकर कहा। "हाँ सही वो नोएडा में जॉब करती है मैं उसे रोज़ पिक करता हूँ।  वो ही  आख़िरी सवारी है, जिसे मैं बहुत प्यार करता हूँ मेहर।" ताबिश की आँखें ही उसकी प्रेम कहानी को बयां कर रही थीं। "अगर इसकी गर्लफ्रेंड न होती तो धिक्कार होता लड़कियों की कौम पर" मेहर के  अंतरमन ने कहा। "पर तुम्हारा दिल तो टूट गया मेहर?" यह मेहर के दिल की आवाज़ थीं। "चलो चलते है।" ताबिश ने  कहा। "ताबिश हम दोस्त तो बन ही सकते है, आख़िर मेरे यहाँ ज़्यादा दोस्त भी नहीं है। सिर्फ कभी-कभी ऐसे ही थोड़ी देर रास्ते में रुककर कर बात कर लेंगे। मेहर की आवाज़ में फिर वही गुज़ारिश साफ़ झलक रही थीं। "ठीक है मेहर ध्यान रखना कि दोस्ती और प्यार के  बीच एक बारीक़ रेखा होती है। और वो रेखा हमेशा बनी रहें।" ताबिश गाड़ी में बैठता हुआ बोला। "क्यों नहीं, कुछ-कुछ होता है ताबिश तुम  नहीं  समझोंगे" उसके मन ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा ।

यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा। ताबिश सिर्फ मंगलवार को ही गाड़ी रोककर उससे साथ कुछ वक़्त के  लिए बात करता। और मेहर उस पर भरोसा  करके  अपनी  ज़िंदगी की सभी  बात  बताती  रहती। वह भी बड़े ध्यान से सुनता जैसे किसी नतीज़े पर पहुँचना चाहता हूँ। मेहर को उसका साथ बहुत अच्छा लगने लगा था। वह चाहती थी कि उसके कंधे पर सिर रखकर या  उसकी  बाहों की  पनाहों  में घंटो बैठी रहे। "वो किसी और का है मेहर" उसके अंतर्मन से आवाज़ आती। और वो उतना ही तड़प  उठती थीं। एक दिन उसने  ताबिश  से पूछा "तुम्हारी गर्लफ्रेंड क्या बहुत सुन्दर है?" "ख़ूबसूरती लफ्ज़ उसके  लिए कम है बस मुझे सिर्फ इतना पता है कि मैं उसके बिना नहीं जी सकता ।" कहते  हुए  ताबिश  मेहर  के  कितने  करीब  आ  गया कि  उसे  खुद  पता  नहीं  चला ।  "मैं  तुमसे  प्यार  करने  लगी  हूँताबिश  'बहुत  प्यारमुझे  लगता  है कि  मैं  तुम्हारे  बिना  नहीं  रह  सकती।  मेहर  ने  यह कहकर  ताबिश  को  चूम  लिया । ताबिश  मेहर  को  धक्का  देकर पीछे  हटा  "होश  में  बात  करो मेहर तुमने  मुझे  छुआ  कैसे !" ताबिश  यह  कहकर कैब  को  दौड़ाता हुआ वहाँ से  चला  गया ।  मेहर अपने घर आ गई। सारी रात उसकी आँखों में नींद नहीं थीं।

अगले दिन ताबिश  नहीं  आया  कई दिन  बीत  गए  पर ताबिश का कोई पता ही  नहीं। मेहर परेशां सी रोज़ हर आने-जाने वाली गाडी  को  देखती पर  ताबिश कहीं दिखाई  नहीं  दिया । उसने एक दिन सारी बात निधि को  बताई । "यार! एक बात समझ नहीं  आती कि आखिर यह ताबिश बंद कंपनी की कैब कैसे चला  रहा  है" निधि  की  बातों  में  संदेह था । "वो सब  मुझे नहीं पता बस इतना पता है कि ताबिश का पता लगाना है।" मेहर की यह कहते-कहते आँख भर आई। "यार! 'रो मत करते है कुछ। मैं पता लगाती हूँ, कुछ और नहीं तो उसके घर का पता भी मिल जाए वही काफ़ी है।" निधि  ने  गले लगाते  हुए  कहा ।

कुछ  दिनों  बाद  निधि  पागलों  की  तरह  भागकर आई  और बताया कि "ताबिश के घर का  पता  मिल  गया ।  बड़ी  ही  मुश्किल से  मिला है यार! किसी दोस्त के दोस्त ने बताया वो भी कभी  उसी लूपरा कंपनी में काम करता था। चल, चले!" निधि ने मेहर को लगभग खींचते हुए  कहा। दोनों पता लेकर नोएडा के सेक्टर 104  पहुँच गई फ्लोर की घंटी बजते ही दरवाज़ा एक अधेड़ उम्र की महिला ने खोला। "जी ताबिश है क्या? "कौन ताबिश?" औरत ने पूछा।  "जी वहीं जो एक कैब चलाता है।" मेहर ने कहा। "देखो बेटा ताबिश पाँच साल पहले हमारे किराए के मकान में रहता था ऊपर वाले फ्लोर पर।"  बड़ा ही अच्छा लड़का था। दो साल पहले सुनने को मिला कि उसने खुदखुशी कर ली है, उसके बाद कुछ पता नहीं।" महिला ने कहा।

"कयययययययययया या!!!!!! आंटी आपको कोई  गलतफहमी हुई है। मेहर ने लगभग चीखते हुए कहा। "हाँ, हो सकता है कि कोई गलतफहमी हो गई है। शायद तुम किसी और ही ताबिश की बात  कर रही हूँ । बेटा! मुझे माफ़  करना" और फ़िर वह दरवाज़ा बंद करके आंटी चली गई। "कोई गलत पता  ले  आई  है  तू  निधि?" यार ! क्या  पता तेरा यह कैब ड्राइवर कोई भूतिया ही हूं।" निधि  ने छेड़ते  हुए कहा। "मुँह बंद कर ऐसा कुछ नहीं है यार! मुझे वैसे भी उसकी बहुत याद आ रही है, एक बार  बात  कर  लेता। इस तरह  गायब तो नहीं होता।" मेहर की आँखें यह कहकर भर आई। "बस कर यार! तू तो इश्क़ में निकम्मी  होती जा रही है। निधि ने मेहर को समझाते हुए कहा।     

अगले दिन मेहर ने  देखा सामने से ताबिश  की कैब  आकर रुकी  और मेहर ने जैसे ही ताबिश को देखा वैसे ही उसके गले लग गई और इससे पहले  वो  कुछ  पूछती ताबिश उसे गाड़ी में बैठाता हुआ बोला चलो कहीं  लेकर चलता हूँ। गाड़ी चलती जा रही थी और नोएडा के फ्लाईओवर को क्रॉस कर गाड़ी एक ऑफिस से थोड़ी दूरी पर रुकी शायद कोई  ट्रेवल और टूरिज्म का ऑफिस था। तभी  मेहर ने देखा  एक  खूबसूरत  सी  लड़की  उसी  ऑफिस  से निकली  और  जैसे  ही क्रॉस करने के  लिए  उसने  कदम  बढ़ाया सामने  से  आती तेज़ कार  ने  उसे टक्कर मारी और वह सड़क पर  गिर गई। खून से लथपथ हो  गई । तभी मेहर ज़ोर से चीख़ी और गाड़ी से  निकलकर  उसकी  तरफ़ भागी पर वहाँ  कोई  नहीं  था। "वो मेरी नूरा थी मेहर"।  मेहर ने  पीछे  मुड़कर  देखा  तो ताबिश खड़ा था "पर ताबिश वो तो वो वो तो।।" "वो  तो मर चुकी है"। ताबिश मेहर  की बात खत्म  से पहले ही बोला"। "एक  दिन ऐसे  ही इधर खड़ा  उसका  इंतज़ार कर रहा  था औरतभी तेज़ गाड़ी अचानक आ गई ड्राइवर पिया हुआ था। उसने मेरी  नूरा  को  टक्कर मारी और बस  सबकुछ वही खत्म।" कभी सोचा था  कैब  का काम छोड़कर  अपना  गाड़ी का  काम शुरू करूँगा और  नूरा  से  शादी  मनाऊँगा, पर"।  ताबिश  कहते-कहते  रुक  गया। "काम  शुरू  क्यों नहीं  किया?" मेहर की  आवाज़  में डर  और  हैरानी  दोनों  थी। वह  समझ नहीं  पा  रही थी कि  अभी  कुछ  हुआ  वह  क्या  था  कोई  सपना  या डरवानी  हक़ीक़त। "कैसे करता मैं यह  सदमा  बर्दाश्त  नहीं  कर  पाया  और  थोड़े  समय  बाद  फाँसी  लगाकर  जान दे दी। मैं  रोज़  नूरा  को ऑफिस  से  लेने  जाता  था। तभी  एक  दिन रास्ते  में तुम  मिल  गई  और  उस  दिन  तुमने  अपने  प्यार  का  इज़हार  किया  नूरा  को  मुझे  देखते  ही  तुम्हारा  सच पता  चल  गया  कि  मुझे  किसी  ने  छुआ  है  और  अब  वो वापिस  चली  गई ।" ताबिश  मेहर  को  देखता  हुआ  बोला।

 "कहाँ  चली  गई"? मेहर  ने  डरते-डरते  पूछा।  "जहाँ मरने  के  बाद  जाना  होता  है  वह  तो  मेरे  खातिर  ही  इस  धरती  पर  भटक  रही थी ।"  बोलते  समय ताबिश की  आँखों  में  आँसू  थे। मेहर  का  चेहरा  सफ़ेद  पड़  चुका  था उसकी दिमाग की नसें  फटती  जा  रही  थी। अब समझ  में  आया  गाड़ी  में  शीशे का  न  होना। आंटी सच  कह रही थी ।  मेहर ने  सोचा। "ताबिश तुम  मुझे  मार  दोंगे  क्या"? डरावना डर उसकी आवाज़ में था। ताबिश  उसकी और  बढ़ता  जा रहा था। मेहर  पीछे  हट  रही थी।  उसने बहुत  क़रीब आकर मेहर का हाथ पकड़ा  "अगर  मैं  तुम्हे  मार  भी  दूँ तो  तुम  तो  मुझसे  प्यार  करती  हूँ  फ़िर  दोनों  हमेशा  के  लिए  साथ  रह  सकते  है।"  ताबिश  ने  मेहर  की  डरी  आँखों  में  देखकर  कहा

"नहीं  ताबिश  मुझे  मरना  नहीं  है"।  और  हाथ  छुड़ाकर मेहर ताबिश से दूर हो गई। "इश्क़  क़ुरबानी  माँगता  है  मेहर।  पर  प्यार  में  हर  कोई  जान  नहीं  दे सकता। जाओं! लौट जाओ" यह कहकर  ताबिश मेहर  से  दूर  जाने  लगा  और  मेहर  ताबिश  को  जाते  हुए देख रही  थी।  तभी ज़ोर  से  चीख  सुनाई  दी  और  ताबिश ने  मुड़कर  देखा एक जोड़ा घायल मेहर  के  पास  खड़ा  उसे  उठाने  का  प्रयास कर  रहा  है ।  "अरे ! यह  क्यों  खुद  हमारी  गाड़ी  के  सामने  आ  गई।"  लड़की  कह  रही  थी।  ताबिश  ने मेहर  का  सिर  गोद  में  उठाया  और  मेहर!मेहर! कहने लगा। "तुम एम्बुलेंस को  कॉल करो मना भी किया था इस  रास्ते से  मत  जाना  मगर  तुम  सुनती  नहीं  हूँ  यहाँ  हादसे  होते  रहते  है । अब  भुगतो"।  दोनों लड़का-लड़की  लड़ाई  कर  रहे  थे ।  ताबिश  बेहोश  मेहर  को  देखा  जा रहा  था  अरे ! "तुम इसे  डॉक्टर  के  ले  जाओं"। ताबिश  ज़ोर  से  चिल्लाया, पर उसे  सुनता  कौन? तभी वो दोनों वहाँ से गाड़ी लेकर भाग गए और  ताबिश चीखता  रह  गया। उसने अपनी कैब का  दरवाज़ा  खोला तभी  यह  क्या ! मेहर  सामने  बैठी  हुई है और  मुस्कुरा रही है।  "मुझे  भी  इश्क़  में जान  देनी  आती  हैं  ताबिश"। ताबिश  ने  मेहर  को  देखा  उसकी  बाहों  में  मेहर  का  ठंडा  पड़  चुका  शरीर  था  उसने  उसकी  आत्मा  को गले  लगाया  और  बेतहाशा  चूमा  और  कैब  चला  दी।

 अगले  दिन  मेहर  के मरने  की  खबर  अखबार  में छप गई  और  निधि  यही  सोच  रही  थी, "वो  भूतिये  ताबिश ने  मेहर  को  मार  डाला।" पर यह मेहर ही  जानती  है  कि  उसने   अपने  प्यार  कैब  ड्राइवर के  लिए  जान  तक  दे  दी !!!

 


 


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